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Nishant Kumar Saxena

Abstract Horror Tragedy

4  

Nishant Kumar Saxena

Abstract Horror Tragedy

युग परिर्वतन की पूर्व संध्या

युग परिर्वतन की पूर्व संध्या

1 min
340


महाकाल के आयोजन का है संदेशा।

नाश प्राण कुल वंश पीढ़ियों का अंदेशा।।


विकट समय धरती का मस्तक डोल रहा है।

दुर्दिन हैं तैयार अमंगल बोल रहा है।।


भू पर मृत देहों के अंबार कराल महा दुख देंगे।

गृद्ध, काग, स्वान, श्रृगाल ग्रास करने को नहीं मिलेंगे।।


अगणित पाप बीज पोषित हो कल्प बने हैं।

मर्दन मानवता का करने को आन खड़े हैं।।


हलाहल के सागर उठे हैं चहुं दिश भूमि का रुदन शोक भारी।

प्रतिशोध नियति का भीषण रण और हाहाकारी।।


मलिन डाकिनी घर-घर तांडव नृत्य दिखेगा। 

शोणित से अपनों के आचमन कौन करेगा?


व्याकुल ध्वनियां महा शोक की बेला, कातर स्वर।

युग परिवर्तन से पूर्व दशा पर विकल अंतर।।


मानवता रोने वाली है।

भीम गर्जना होने वाली है।।


ताप विकट, संताप विकट, विलाप विकट और रुदन।

मृत देहों के भीतर वे खोजेंगे अपने और स्वजन।।


भू संपत्ति भवन आवास मृतिका बन खाक।

झुलसे घायल अंगारों से देहों की राख।।


रण, आतंक, रुधिर की कीच नियति का खेल बना।

सुरसा सा मुख किए गगन भी देख चला।।


चिंतित अंतर अपने प्रिय जन की हानि देख सम्मुख।

मद, मानी, नेत्रहीन, भौतिकवादी समझे क्या दुख?


कृपा पात्र प्रभु के अब आगे जायेंगे।

मृत्यु मृत्यु मृत्यु के बादल मंडराएंगे।।


इतना खोकर अरे नियति फिर कौन जिएगा ?

शेष रहेगा वही धरा से घृणा करेगा।।


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