Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Niru Singh

Abstract

4.5  

Niru Singh

Abstract

कुछ ख्वाब अधूरे  से

कुछ ख्वाब अधूरे  से

1 min
252


कुछ ख्वाब अधूरे से,कुछ सपने बिखरे से!

तेरा खुद में होने का एहसास

कभी कर न पाई।

तुझसे दुनिया की हर खुशी मिले

वो नशीब न पाई।


तेरा धीरे-धीरे बढ़ना,

तेरे एक एक अंग को, महसूस कर न पाई!

तेरी धड़कन खुद में कभी सुन ही न पाई!

मेरी साँसे तेरी साँसों से कभी जुड़ ही न पाई 

तेरा डोलना,मुझे गुदगुदा ही न पाया।


तेरा मुझमें होने का एहसास, 

मैं कभी देख ही न पाई। 

तुझसे मिलती नई पहचान मुझे,

होता मेरा भी पूर्व जन्म तुझमें। 


बदलते मेरे भी तो रंग-ठग कई,

छोड़ अपना अल्हड़पन तुझे संभालती,

तेरे नखरे उठाती वो किस्मत ही न पाई।

मेरा अंश मेरे हाथों में होता

उस पल को कभी जी न पाई।


सोती रातों को तू जगाता,

वो रात कभी आई ही नहीं।

पूर्ण तो तुझी से होता नारी जीवन मेरा।

किसी और के कर्मो की सजा मैंने पाई

मैं कभी माँ न बन पाई !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract