नाजायज मोहब्बत
नाजायज मोहब्बत
है बस ख्याहिश इतनी कि
पाऊँ हक की मोहब्बत तेरी,
एहसान नहीं बस वो चाहत देंदे
जो तूने शुरू की थी!
अब वो! मेरी आरजू बन गईं है ।
अश्क़ और इंतजार मोहब्बत में सौगात है,
इन्हे न बना ज़िंदगी मेरी ।
चाहा बस तुझे, तू कौन ये जाना नहीं ।
तेरे सीने में है गर दिल कहीं
बस ढूँढ रही अपना बसेरा वहीं ।
मेरे जिस्म की खूबसूरती तो
एक दिन वक्त के साथ ढल जाएगी
पर चाहत मेरी,मेरे बाद भी तेरा साथ निभाएगी ।
तू दे बस उतना ही जो मेरा है,
किसी और का हिस्सा न चाहूँ!
गर न दे सके तो लौटा दे वो वक्त मेरा,
जो खर्च किए थे तेरे इंतजार में,
चूका दे क़ीमत उन आँसुओं की
जो बेवजह ही निकले थे तेरी आस में ।
बस इतना तो बता दें?
क्या थी मैं तेरी? चाहत या जरूरत!
दूँ इसे नाम क्या नजायज मोहब्बत!