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Niru Singh

Romance

4.4  

Niru Singh

Romance

नाजायज मोहब्बत

नाजायज मोहब्बत

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242


है बस ख्याहिश इतनी कि 

पाऊँ हक की मोहब्बत तेरी,

एहसान नहीं बस वो चाहत देंदे

जो तूने शुरू की थी!

अब वो! मेरी आरजू बन गईं है ।

अश्क़ और इंतजार मोहब्बत में सौगात है,

इन्हे न बना ज़िंदगी मेरी ।

चाहा बस तुझे, तू कौन ये जाना नहीं ।

तेरे सीने में है गर दिल कहीं

बस ढूँढ रही अपना बसेरा वहीं ।

मेरे जिस्म की खूबसूरती तो 

एक दिन वक्त के साथ ढल जाएगी

पर चाहत मेरी,मेरे बाद भी तेरा साथ निभाएगी ।

तू दे बस उतना ही जो मेरा है,

किसी और का हिस्सा न चाहूँ!

गर न दे सके तो लौटा दे वो वक्त मेरा,

जो खर्च किए थे तेरे इंतजार में,

चूका दे क़ीमत उन आँसुओं की 

जो बेवजह ही निकले थे तेरी आस में ।

बस इतना तो बता दें?

क्या थी मैं तेरी? चाहत या जरूरत!

दूँ इसे नाम क्या नजायज मोहब्बत!



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