मेरी सहेली
मेरी सहेली
बचपन में थी मेरी एक सुंदर, प्यारी सी सहेली,
वो मेरे बिना और मैं उसके बिना थी अकेली।
खेला करते थे हम साथ, साथ करते थे पढ़ाई,
एक दिन हो गई दोनों के बीच लंबी सी जुदाई।
शादी कर ली थी उसने, हो गई थी उसकी बिदाई,
कुछ साल बाद मेरी ज़िंदगी भी बिल्कुल बदल गई।
दूर हुए थे दोनों, तक़रीबन पंद्रह साल गए थे बीत,
नहीं था दोनों में संपर्क, पर दिल से थे दोनों क़रीब।
एक दिन अचानक एक लड़की का कॉल आया,
मीठी आवाज़ में उसने अपना नाम सलमा बताया।
वीडियो कॉल में देखकर ख़ुश हुई थी सलमा-ज़ोया,
दोनों को ऐसा लगा जैसे अपने अक्स को सामने पाया।
सहेली की फ़रमाइश, लिखूँ अपनी दोस्ती पर कविता,
सलमा को पेश है ये नज़राना 'ज़ोया' की ये लिखिता।