गुरू-मंत्र।
गुरू-मंत्र।
जगत के खेल हैं बड़े निराले।
चाहे तू सुख-दुख में जी ले, चाहे भक्ति रस पा ले।।
अज्ञानता में क्यों भटक रहा, बुद्धि- विवेक तू पा ले।
भव-सागर से बचना है तो, संत शरण में जा ले।।
अंधकार तेरा मिट जाएगा, सत्संगत अपना ले।
निर्भर करता तुझ पर सब कुछ, गुरु की महिमा गा ले।।
हर शौ में उसका ही जलवा है, कितने ही तीर्थ कर ले।
वो तो तेरे हृदय में ही रहता, थोड़ा ध्यान तो लगा ले।।
पा जायेगा उसको पल में, गुरु- ज्ञान तो पा ले।
सरल मार्ग वो ही दिखलाते, "नीरज" गुरु-मंत्र तू अपना ले।।