कृपा दृष्टि
कृपा दृष्टि
प्रभु के बस कृपा दृष्टि से, जीवन शुद्ध सरल बन जाता है।
गृहस्थ में जकड़ा अब तक प्राणी, विरक्त भाव पा जाता है।।
जिस दरबार में लाखों जाते, वह दरबार निराला है,
मनवांछित फल वह हैं, पाते प्रभु सब का रखवाला है,
बिन मांगे वह सबको देते,आत्म सुख पा जाता है।।
प्रभु के बस.....
अज्ञानी भी थकित हुए तब,प्रभु उस पर भी रहम करते हैं,
दीन सुदामा बन जो भी जाते, पल भर में संकट हरतें हैं,
सदाचार की उत्काष्ठा में, प्राणी जब अकुलाता है।।
प्रभु के बस.....
काम, क्रोध,माया का मन में, लेश मात्र&
nbsp;अभिमान न हो,
सेवा भाव से परिपूर्ण हो जीवन, किंचित गलत व्यवहार न हो,
दीन भिखारी बन जो भी प्राणी, प्रभु शरण में जाता है।।
प्रभु के बस......
मन विकारों से लदा जब प्राणी, नित कुकृत्य कर्म करता है,
देख दशा ऐसी मानव की, प्रभु का हृदय पिघलता है,
किंकर्तव्यविमूढ़ बना जब प्राणी,अपनी व्यथा सुनाता है।।
प्रभु के बस.....
गृहस्थी में अध्यात्म अपना लो, ऐसा संत जन कहते हैं,
मोह-माया भी दूर भागती, सदा लीन प्रभु में रहते हैं,
संत शरण पल भर में पानी से, "नीरज" प्रभु को देखा करते हैं।।
प्रभु के बस........