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S K Maurya

Abstract

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S K Maurya

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चांद

चांद

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तुम अगर चांदनी हो तो, 

मै भी हूं सूरज की तरह।

याद तुम रखना इसे, 

चांदनी के पास रोशनी नहीं होती स्वयं की।


          वो तो सूरज की किरणों से खुद को, 

          रोशन करती रहती है।

          यदि जिस दिन सूरज की 

          किरणे पड़ती नहीं उसपर है।


वो चांदनी अपने को ही, 

पहचान नही पाती है।

जब तक सूरज उसको 

किरणे है देता वो समझती 

मै ही रोशनी हूं।


           पर सूरज की किरणों के जाते ही 

           उसको असल एहसास होता,

           अपनी गलती का उसे 

           बहुत पश्चाताप होता।


पर समय बीत जाने पर इस 

पश्याताप का कोई अर्थ नहीं,

जैसे प्राणों के निकल जाने पर 

इस काया का कोई अर्थ नहीं।


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