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S K Maurya

Abstract

4  

S K Maurya

Abstract

मेरा मन

मेरा मन

6 mins
192


मेरा मनकुछ नए भावनाओं को मन में समेटे,

नई रचना मै कर रहा हूं।

अपने दिल की धड़कनों को 

नया शब्द प्रदान मै कर रहा हूं।

शायद अपने मुख से मै इन शब्दों को कह नहीं सकता हूं।

इसीलिए एक नई रचना से इसे मैं व्यक्त कर रहा हूं।

क्या मैंने खोया है आज और मैंने पाया है क्या ,

इस विचार से हि मै अपनी रचना प्रारंभ कर रहा हूं।


जब नए वर्ष का प्रारंभ हुआ, 

मेरा मन भी कुछ बदल गया।

एक नया विचार और अभिलाषा 

किसी और के लिए वह बुनने लगा।

मन के इस गतिशील परिवर्तन से,

मैं कुछ दिन तो अनिभिग्य रहा।


किंतु जब मुझको कुछ इसकी खबर लगी, 

सहम मेरा मन कुछ और गया।

पहले मेरा मन डरता था

इन सभी नई परिकल्पनावो से। 

किंतु वही जब सम्मुख आया 

मेरा मन स्वयं ही बदल गया।


मैंने स्वयं को रोका बहुत किंतु 

इस चंचल मन के आगे मै शिथिल हुआ। 

अपने स्वयं के नियंत्रण से मै

 कुछ ज्यादा ही बाहर हुआ।

उसका ही यह कारण है कि 

आज मेरा मन कुछ दुखी हुआ। 


कुछ नई परीकल्पनाओं की वजह से ही,

यह कुछ विचलित सा है हुआ।

शायद कुछ भ्रम मैंने ही पाल,

रखे थे अपने इस चंचल मन में।

किंतु भ्रम भी इतना सुखमय,

होता है क्या जीवन रंग में।


किंतु अंधेरे को चीरकर जिस तरह 

सूर्य उदित आवश्य होता है।

वैसे ही स्वपन आंख खुलने पर 

लुप्त सा हो जाता है।

पर आंख जितनी जल्दी खुले 


मनुष्य नव पथ का निर्माण 

उतनी जल्दी कर लेता है।

अपनी परिकल्पना से वास्तविक 

 जगत में आ जाता है।


पर यह चंचल मन कुछ,

स्वीकार जल्दी करता नहीं।

वरन् वह और कुछ भी 

नया विचार विचारने लगता है।


 मन भले ही गंगा सा पावन हो,

 पर उसे भी समझने वाला मिलना चाहिए ।

 वरना उस गंगाजल को भी 

समुद्र सा बन जाना चाहिए।


मेरे भी इस जीवन क्षण में,

मृदु सा क्षण एक बार है आया।

कुछ नए विचारों को वह ,

मेरे मन मे वह साथ ले आया।

इस नए विचार कों मै भी

पल - पल अपने मन में रोकता था।


पर हाय ! कहा वह भी किसके

आगे कभी झुकता था।

शायद नव यौवन का प्रारम्भ, 

कुछ इसी प्रकार होता है।


जब मन की कोमल दाहलिजो पर,

एक नया जन्म होता है।

इस कोमल से मन के भीतर भी

एक नया पुष्प उग जाता है,

जाने कहा से इसे,

वायु और खाद मिल जाता है।

नीर का संचार जाने कौन इसमें

आकर कर जाता है और


मन भी कुछ प्रफुल्लित इससे हो जाता है।

 मन मेरा भी शायद इसी प्रकार

  कभी प्रफुल्लित हुआ करता था।

 नया पुष्प उसमे भी आकर

 उग आया करता था।


उसकी बातों और अदाओं को,

मैं बड़े ध्यान से सुनता और देखता था।

पता नहीं क्यों मेरा मन,

उसे देख प्रफुल्लित होता था।

 उसके कारण मै रोज सुबह,

  कुछ जल्दी पहुंच है जाता था।

 पर डर के कारण एक शब्द भी,

  मुख से कह नहीं पाता था ।


पता नहीं क्यों मेरा मन उससे

इतना घबराता था।

उसकी नज़रों के सामने,

मै कुछ भी कह नहीं पाता था।

पर इससे भी मुझको एक

नई खुशी मेरे मन में अनुभव होती थी।


उसके बात कर लेने से,

मेरी अभिलाषा पूर्ण हो जाती थी।

मेरा यह चंचल मन अत्याधिक 

प्रसन्न हो जाता था।


उसके बस कुछ कह देने से

यह फूला नहीं समाता था।

 पता नहीं क्या कारण था जो

 वह मुझको इतना अच्छी लगती थी।


 उसका वह चंचल स्वभाव या

 उसकी मधुर छवि प्यारी थी।

मुझको इतनी कभी हिम्मत न हो सकी,

कि इक बार गौर से देखूं उसे।

उसकी उस मधुर छवि को मै

अपनी नजरों से मै निहार सकू।


दिल तो हमेशा कहता मुझसे 

 एक बार प्यार से देख ले उसे, 

 पर मेरे इस भीरू मन ने मेरा 

 कभी है साथ नहीं दिया।

कभी अगर वह मुझको नहीं दिखती

मन मेरा उदास हो जाता था।


उसके लिए मेरे हृदय में,

एक नया भाव जग जाता था।

 पर उसके लिए मेरे दिल में,

 कभी नहीं कोई कुविचार है उपजा।

 बल्कि वह हमेशा खुश है रहे,

 यही उसके लिए उपहार है निकला।


उसकी कुछ मधुर बातें मुझको

आब भी प्रसन्न करती रहती हैं।

मेरे इस भीरू मन में वह,

मुझको सुनाई देती रहती हैं।

शायद उसको यह नहीं पता


उसकी कुछ यादें बसती है यहां।

 जिसके कारण उसकी मधुर छवि,

 मन में निहार लेता हूं मैं।

यदि सुबह-सुबह उसकी छवि को

निहार में लेता था।


मेरे अंदर एक नई ऊर्जा का,

प्रवाह हो जाता था।

 मेरे सामने रहे वह इसलिए,

 मैं सबसे दूर बैठता था।

 पर ना जाने उसको इसमें

 कुछ नया क्यों नहीं लगता था।

उसके लिए ही मैं कुछ देर,

तक खड़ा रहा करता था।

पर जाने किस धुन में खोई,

वह दूर निकल जाती थी।


 उसकी मधुर छवि को लिए,

मैं आज भी चलता फिरता हूं।

शायद आज मैं इसीलिए,

 नई रचना कर पाता हूं।

उसने मुझको कुछ पल है दिया,

अपनी अमूल्य धरोहर से।

जिनको मैं आज भी रखता हूं,

अपनी कीमती तिजोरी में।


एक बार सब से बचते हुए

मैंने उसकी नजरों को,

अपनी नजरों से देखा था।

उस पल मेरा हृदय भी,

वायु से तेज है चलता था।


उस दिन शायद पहली बार मैंने,

अपनी नजरें किसी से मिलाई थी।

उस पल जीवन जीने का,

नया अनुभव मुझको प्राप्त हुआ था।

उससे बातें करने के लिए,

मै नए विचार विचारा है करता था।

पर मेरा यह भीरू मन,

मेरा जल्दी साथ कभी ना देता था।

पहली बार जब उसकी मधुर छवि

मेरे समक्ष है आई थी।


मेरे इस भीरू मन ने,

एक बार आवाज उठाई थी।

मैंने डरते डरते ही कई बार,

उससे अपने मन की बात कही,

पर ना जाने उसने इसको,

क्या अपने मन में तवज्जो दी।


मैंने कई बार है उसको,

इशारों में बातें समझाई थी।

पर ना जाने क्यों उसको

यह सब कुछ समझ ना आई थी।


 पर इसमें उसकी भी कुछ

गलती नहीं मैं कह सकता।

शायद उसका मन मेरे

जैसा नहीं हो सकता।

उसका मन मेरे से भी कोमल हो,

ऐसा भी हो सकता है।


इसीलिए शायद वह मेरी,

बातों को नहीं समझ पाई।

 उसका वह कोमल मन ना जाने,

 मेरे हृदय को क्यों भाता था।


 ना जाने उसकी किन कोमल बातों का,

 मुझ पर प्रभाव पड़ जाता था।

पर शायद उसके इस मन को,

मैं भी सही से समझ ना पाया।

इसीलिए तो आज भी मुझे,

उसका साथ ना मिल पाया।

 एक दिन मेरे इस भीरू मन ने भी,

 एक नया इतिहास रचा।


 अपने हृदय की सब बातों का,

 उसके सामने इजहार किया।

मैंने शायद जीवन में पहली बार,

इतनी ज्यादा हिम्मत की।


और उसके समक्ष खड़ा होकर मैंने कहा,

मुझे आपसे कुछ बात है करनी।

  उसका वह खिलता चेहरा,

कुछ समय के लिए विचारों में उलझ गया।

उसका भी चंचल मन शायद,

उस समय स्थिर हो गया।


मैंने उस पल उसके चेहरे के भावों,

पर पल-पल नजर रखी।

मैंने पाया उसका वह खिलता चेहरा,

कुछ गंभीर राग में डूब गया।

उसका वह गंभीर चेहरा,

 अब भी मेरी आंखों के सामने आ जाता है।


 उस पल उसके भाव का,

 चिठ्ठा मेरे सामने खुल जाता है।

उसने कुछ सोचते हुए कहा बैठो इधर,

मैंने भी उस समय उससे कह हि दिया

"आप पसंद हो मुझे"

इतना सुनते ही उसके शब्द कुछ गंभीर हुए।


 उसने मुझसे कहा " माफ करिए"।

 मुझको इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।

मैंने फिर उससे कहा एक बार

पुनः विचार अवश्य कीजिएगा।

उसका यह कथन सुन,

मेरा हृदय कुछ उदास हुआ।

मेरी प्रथम ' हृदयस्पर्शी ' बात का,

उल्टा मुझ पर ही प्रहार हुआ।


मेरा मन उसके लिए

उस समय प्रथम बार रोया था।

मेरी प्रथम साधना का फल

निष्फल ही हो गया था।

शायद यह उसके लिए पहली बार नहीं,

पर मेरे लिए यह पहली बार ही था।


मैंने प्रथम बार ही अपनी अभिलाषाए,

किसी के समक्ष रखी थी।

पर ना जाने क्यों वह भी

पूरी कभी भी ना हो सकी थी।

मेरी वह अभिलाषा शायद

 उसकी अभिलाषा से परे हो गई।


मुझे उससे भी कुछ क्रोध नहीं,

क्योंकि उसने भी कुछ सोचा होगा।

मेरी उन बातों का कुछ तो,

उसने चिंतन मनन अवश्य किया होगा।


जो उसने कहा वह भी मंजूर है मुझे,

 क्योंकि मुझे किसी को परेशान करना पसंद नहीं है।

अब इसको ही अपनी किस्मत जानकर

अब मै भी आगे बढ़ जाऊंगा।


अब आने वाले नए समय में,

एक नया इतिहास रचना है मुझको।

अपने दिल की बातों को अब,

दिल में ही रखना है मुझको।


 आब किसी से कुछ कहने के लिए,

शायद हिम्मत नहीं होगी।

अब अपने मन की बातों का,

शायद मन ही एक साथी होगा।


तुम अगर एक बार मेरी बातों को समझ पाती,

तो तुम मुझसे शायद ही यह सब है कह पाती।

मैं बहुत ज्यादा सोचता हूं शायद,

इसलिए कुछ कह नहीं पाता हूं।

अपने दिल के अरमा को,

किसी को बता नहीं पाता हूं।


 मुझमें इतनी हिम्मत नहीं,

 मैं बार-बार एक ही बात कहूं।

 पर ना जाने मुझको क्यों तेरा,

 अब भी इंतजार रहता है।

अगर मैं शांत, गंभीर चित्त था,

तो तू भी कोमल हृदय सी थी।


मेरे मन के उस शून्य ह्रदय में,

तू भी एक कोमल पुष्प सी थी।

 मेरे उस मृदु से मन के अंदर,

 अभी कुसुम तुम्हारा खिलता है।


 तुम्हारे उस चंचल स्वभाव का,

एक मधुर स्वरूप मुझे दिखता है।

पर हाय! कहां वो पुष्प,

मेरे जीवन को महका पाया।

मेरे मन के उस शून्य हृदय को,

कहां वह भर पाया।


पर मैं अब भी अपनी बातों पर,

अडिग रहने का पूर्ण प्रयास करता हूं।

मेरे जीवन के इस शून्य स्थान को,

शून्य ही रखने का प्रयास मै करता हूं।


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