मेरा वसन्त
मेरा वसन्त
नव वसंत का आगमन आज प्रारंभ हो
नव वसंत के साथ नव पल्लव भी
अब पेड़ों पर आ जाएंगे।
एक नई सुगंधित वायु सब दिशाओं को
अब वह प्रदान कर जाएंगे।
किंतु मेरे इस विचलित मन को भी
क्या एक नई दिशा प्रदान वह कर पाएंगे ?
या वह भी पतझड़ सी ही शुष्क शून्य रह जाएगी।
कहते हैं वसंत सुख का सूचक है।
पर मेरे इस विचलित मन को
क्यों नहीं कर पा रहा है वह प्रसन्न।
क्या मेरी अभिलाषा ज्यादा है,
या मेरे कर्म है अकर्म।
अब तो तरु की उस शुष्क डाली पर
नव पल्लव का आगमन भी हो जाएगा।
पर मेरे इस शुष्क मन पर
जाने यह क्या प्रभाव अब कर जाएगा।
क्या उस मधुर सुगंधित वायु का
मैं भी रसपान कर पाऊंगा।
या केवल अपने सपनों में
देख उसे मैं रह जाऊंगा।
मेरा मन भी इस वसंत सा
प्रमुदित होना चाहता है।
पर ना जाने किस सोच के
कारण यह पतझड़ सा हो जाता है।
शायद जिसको मैंने वसंत है समझा
वह अब मुझको छोड़ चली।
मेरे इस प्रमुदित जीवन को वह,
पतझड़ सा वह अब बनाने लगी।
अब तो सूरज की किरणों में भी
नव उमंग प्रदर्शित होगा।
पर मेरे इस सादे जीवन को
क्या वह प्रसन्न कर पाएगा ?
मैंने जिसको चाहा वह,
इस वसंत सा खिला रहे।
उसके मधुबन में भी एक,
कोमल सा पुष्प सदा ही उगा रहे।
उसकी मधुर छवि इस,
सूरज की किरणों से भी तेजस्वी हो।
उसका यह जीवन भी,
इस वसंत से भी ज्यादा प्रमुदित हो।
