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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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खुद को न बदलो

खुद को न बदलो

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दूसरों के ख़ातिर खुद को न बदलो

अपने भीतर की रूह को न बदलो


जैसे हो आप वैसे ही बहुत अच्छे हो,

दूसरे के लिये अपना बर्ताव न बदलो


आप मस्त हो,भीतर से बड़े ससख़्त हो,

दूसरों के ख़ातिर अपना तख्त न बदलो


अपने चेहरे पे दूसरों की परत न दो

दूसरों के खातिर खुद को न बदलो


कोहिनूर को कहने की जरूरत नही है

उसमे रोशनी है,उसे न रोशनी की कहो


हीरे को तुम कोरा एक पत्थर न समझो

वो स्वतः रोशन होगा,तुम दीप सा जलो


दूसरों के खातिर खुद को न बदलों

ख्वाबों को ज़माने के लिये न तोड़ो


आप स्वस्थ आदमी हो,स्वस्थ ही रहो

दूसरों के कहने से रास्ते को न बदलो


मिलेगी मंजिल,खिलेगी हर महफ़िल,

दूसरों के कहने से चाल को न बदलो


दूसरों के खातिर खुद को न बदलो

यूँ अपनी स्व:खुश्बु को न भूलने दो।


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