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ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

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छोड़ना आसान है क्या

छोड़ना आसान है क्या

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क्या छोड़ना इतना 

आसान होता है,

जो तुम छोड़ देते हो 

करीब आकर किसी

को यूं अचानक,

क्या तुम्हें याद नहीं रहता,

वो रात भर जागकर

बातें करना,

या बस यूं ही आदत है तुम्हारी 

किसी से भी दिल लगा लेना,

बस पूछना है एक सवाल 

कि क्यूं आते हो जिंदगी में,

जब छोड़कर जाना 

ही होता है,

ऐसा क्या होता है जो 

शुरुआत में तुम्हें सब 

अच्छा अच्छा लगता है,

और बाद में बस 

कमियां ही कमियां 

दिखती है।


अकेले जीना इतना मुश्किल

तो ना था हमारे लिए,

जो तुम जबरदस्ती

घुसकर जीवन में 

मुश्किल किये जाते हो जीना,

फिर मजबूरी का नाम दे,

पल्ला झाड़ लेते हो,

ये मजबुरियां ये घर परिवार

की समस्याएं,

तुम्हें पहले क्यूं नहीं दिखाई देती,

क्या पहले ये मजबूरियां

लंबे टूर पर चली जाती हैं,

या चली जाती है सावन की तरह

बादलों के साथ,

और फिर जब प्यार 

गहरा हो जाता है,

तो टपक पड़ती है अचानक

बरसाती मेंढक की तरह,

और किसने सिखाया है

ये भोली सूरत बनाकर,

दिल के टुकड़े टुकड़े 

कर जाना।


तुम तो चले जाते हो,

पीछे छूट जाती है,

अध जगी रातों की नींद,

सुबह की मीठी शुरुआत,

अचानक से मोबाइल स्क्रिन

पर आया प्यार भरा संदेश,

ऐसे कैसे छूट जाए 

ये आदतें,

जो डाली थी तुमने 

अपनी‌ सुविधा के अनुसार,

मेला खत्म होने के बाद

पसरा हुआ सन्नाटा,

और विवाह सम्पन्न होने के बाद

खाली हुआ मंडप सा जीवन,

फिर तो धकेलने से भी 

नहीं धकेला जाता है।


कैसे एक पल में भूला दिए जाएं,

वो वादे जो भावुकता में

कर दिये,

वो कसमें जो खाईं थी 

तुम्हारे चेहरे की मीठी

मुस्कान के लिए,

वो एक दूसरे को खोने के डर से 

लिखा गया लंबा माफीनामा,

वो ना चाहते हुए भी

खुद को बदलने की

मासूम ख्वाहिशें।

वो गुस्सा आते हुए भी 

तुम्हारी जिद्द के आगे

सिर झुका लेना,

जानते हुए भी तुमसे

एक झूठी उम्मीद लगा लेना,

कभी भिखारियों की तरह

तुमसे मोहब्बत की भीख मांगना,

और कभी झूठे अभिमान में 

तुम्हें चार बातें सुना देना,

फिर खुद ही मन ही मन

पछताकर,

तुमसे माफी मांग लेना।


क्या सच में इतना आसान है,

होता है तुम्हारे लिए,

इस जटिल प्रक्रिया को निभाना,

या छोड़ने का विचार

तुम पहले ही बनाकर रखते हो

अपने मन मस्तिष्क में,

तो कैसे कर पाते हो,

वो हर पल साथ देने का 

दिखावा,

रिश्ता खो देने का पछतावा,

क्या प्रेम के इस दिखावे में तुम्हें

कभी सच्ची मोहब्बत 

नहीं ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌होती,

क्या कभी नहीं लगता कि

तुमने भी कुछ खोया है,

तुम्हें पाने के लिए

कोई दिन रात रोया है,

या खाते हो तुम कोई खुराक 

दिल को पत्थर बनाने की,

जज्बातों को छुपाने की,

सिर्फ कुछ दिन ही

प्यार जताने की,

या मोहब्बत भुलाने की,

अगर है ऐसी दवा तो

हमें भी बताना जरा,

कैसे छोड़ देते हैं किसी को

इतनी आसानी से

हमें भी सिखाना जरा....


जिंदगी का एक सितम ये भी है कि

 तुमको प्रेम कर सकते है, फोन नहीं।


कितना कुछ कहने का मन होता है तुम से, तुम्हें फोन करने का,

कितनी बक बक करने का, जिद्द करने का, थोड़ा सा हक जताने का तुम पर

और खूब सारा प्यार करने का... 

फिर यूँ होता है कि थोड़ी सी ज्यादा समझदार हो जाता हूँ और चुप रह जाता हूँ....


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