होली की पौराणिक कथा
होली की पौराणिक कथा
वसंत ऋतु के आगाज़ का, प्रतीक होली का त्योहार।
बुराई पर अच्छाई की जीत है ये, है रंगों का त्योहार।।
प्रेम भाईचारा दर्शाती होली, महत्व रखती पौराणिक।
यह त्यौहार मनाने के पीछे, एक कथा बड़ी प्रचलित।।
फागुन मास पूर्णिमा, होलिका दहन की है ये कहानी।
रंगों से अच्छाई का जश्न मनाने की परंपरा ये पुरानी।।
प्रह्लाद की भक्ति के आगे क्षीण, होलिका का घमंड।
मिला हिरण्यकश्यप को उसके पापों का उचित दंड।।
घोर शत्रुता थी हिरण्यकश्यप को, विष्णु भगवान से।
ईश्वर रूप में पूजो मुझको घमंड में कहता जहान से।।
यज्ञ आहुति पर रोक लगा, भक्तों पे करता अत्याचार।
दिन प्रतिदिन उसके पाप का बढ़ता जा रहा था भार।।
प्रह्लाद पुत्र हिरण्यकश्यप का था विष्णु भक्त परम।
विष्णु भक्ति ही जीवन उसका, विष्णु भक्ति ही धर्म।।
पिता के लाख मना करने पर भी भक्ति में रहता मग्न।
प्रह्लाद को भक्ति से रोकने के, निष्फल सारे प्रयत्न।।
दर्प वशीभ
ूत होकर स्वयं के पुत्र को मरवाने की चेष्टा।
कई बार की हिरण्यकश्यप ने, कैसा अहंकारी पिता।।
किंतु हर बार प्रहलाद की होती जीत भक्ति के फल से।
बाल भी बांका नहीं होता था, हिरण्यकश्यप के दंड से।।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिसे प्राप्त वरदान।
प्रज्वलित अग्नि ज्वाला में सुरक्षित रहती उसकी जान।।
बुलवाकर हिरण्यकश्यप ने होलिका को बनाई योजना।
समझाया प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाना।।
भाई की आज्ञा से होलिका प्रह्लाद को ले बैठी अग्नि में।
मारने की मंशा थी उसकी, स्वयं भस्म हो गई अग्नि में।।
वरदान तो उसी वक्त़, समाप्त हो गया था होलिका का।
जब उसने मन में सोचा, एक विष्णु भक्त को मारने का।।
तब से मनाया जाने लगा बुराई पर अच्छाई की जीत को।
होलिका दहन कर, अग्नि में जलाया जाता हर बुराई को।।
तभी से शुरू हुई यह परंपरा होली की, रंगों से खेलकर।
प्रमाण है ये, बुराई सदैव ही हारी है, सच्चाई से लड़कर।।