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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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माँ तेरी ममता की छाँव में

माँ तेरी ममता की छाँव में

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याद तेरी बहुत आती है माँ, जब कोई काँटा चुभता पाँव में,

कितना महफूज रहा करता था माँ, तेरी ममता की छाँव में,

एहसास ही नहीं हुआ कब बचपन गया कब उंगलियाँ छूटी,

कब इतना दूर निकल गया, बैठकर जीवन की इस नाँव में।


वो एक-एक कदम आगे बढ़ाना तेरी उंगलियों को थामकर,

वो तेरा मेरी हर मुस्कुराहट को पहन लेना मैडल समझकर,

आज भी याद है मुझको माँ, तेरे नेह भरे कर का वो स्पर्श,

हर ग़म हर तकलीफ़ भूल जाया करता था, जिसे पहनकर।


वो तेरी लोरी का एक-एक शब्द जैसे मीठी नींद की चादर,

कितने सुकून से सोया करता था मैं हर रात जिसे ओढ़कर,

मेरी हर बेचैनी की तकलीफ़, तेरी आँखों में दिखती थी माँ,

जाने कितनी ही रातें तूने मेरी खातिर काटी होंगी जागकर।


पहला निवाला तू मुझे खिलाती थी खुद चाहे भूखी रहती,

मेरे होंठों पे मुस्कान सजाने को, तू अपने आँसू छुपा लेती,

तेरी ममता की शीतल इस छाँव में, इतनी शक्ति समाहित,

कि जीवन की चिलचिलाती धूप को भी इसमें समेट लेती।


लफ्जों में बयां कर सकूँ तेरी ममता ऐसी कोई कदर नहीं,

कितने भी ले लूं जन्म, कभी उतार सकता तेरा क़र्ज़ नहीं,

मेरी मृत उम्मीदों को सदैव तूने संभाला संजीवनी बनकर,

जो कुछ भी हूँ तेरी बदौलत तुझसे अलग मैं कुछ भी नहीं।


जन्नत ढूँढते लोग यहाँ वहाँ, मैंने तो जन्नत तुझमें ही पाया,

माँ शब्द ही इतना सुन्दर जिसमें समस्त ब्रह्मांड है समाया,

खुद से रहती अनजान पर संतान की हर साँस से जुड़ी है,

दौलतमंद वो इंसान जिसके सर, माँ की ममता की छाया।



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