स्त्री हूं मैं !
स्त्री हूं मैं !
खुद से पैदा हुई मैं
खुद की न रह पाती हूं
कभी इस घर की पराई तो
कभी उस घर की पराई में ही
सिमट सी जाती हूं,
खुद का नाम होकर भी मैं
आरो के नाम से पहचानी जाती हूं
जगत जननी मां का रूप लेकर
भी क्यों मे खुद को नाम नही दे पाती हूं,
कभी देवी, कभी सीता और कभी राधा
बन मै सभी को खूब भाती हूं
फिर क्यों वही देवी, सीता ओर राधा बन
मै शोषित हुई जाती हूं,
कभी त्रिशूल तो कभी शेर
पर मैं विराजित हो जाती हूं
फिर क्यों मैं किसी पर्दे मे छुप सी जाती हूं,
सारे किरदार निभा कर भी क्यों मैं
सिर्फ अबला बन रह जाती हूं,कोई तो बताए मुझे
क्यों मैं स्त्री होकर भी एक
सशक्त स्त्री नहीं बन पाती हूं।