नवरात्रि के नौ रूप
नवरात्रि के नौ रूप
जन्म से जीवन पर्यन्त तक
आत्म सम्मान के लिए लड़ती नारी
अपने मन में जगाती हैं दिव्य चेतना
और करती हैं धारण शैलपुत्री का अवतार।
पग पग भर अपने आप को साबित कर
अपने सुख दुख के सफर में
खुद को संभालती नारी
विचरण करती हैं अनंत तक और
धारण करती हैं ब्रह्मचारिणी अवतार।
गलत विचारों भावों में बंध कर
वो संघर्ष करती हैं एकाग्रता को पाने का
अस्त व्यस्त से उसके जीवन की परिस्थिति
को सुचारु बनाने को धारण करती हैं
अवतार चंद्रघटा का।
ज्ञान में पूर्ण, वो बुद्धि, प्रज्ञा से
लोभित हो कर भी देती परीक्षाएं हैं
और अपनी प्राण शक्ति को बढ़ाने के लिए
वो धारण करती हैं अवतार कुष्मांडा का।
अपने व्यवहारिक ज्ञान अथवा क्रियात्मकता से
वो लोभित होकर हर चुनौती को स्वीकार करती हैं
और नित नए दिन अपनी शक्तियों का प्रयोग कर
वो धारण करती हैं स्कंद अवतार।
प्रपंच सी घटित घटना को वो स्वीकार कर
खोजती हैं गुप्त रहस्यों को,
कभी क्रोध में वो खोज लेती हैं
सर्जनता और सत्य और धारण करती हैं
कात्यायनी का अवतार।
सारी सीमाओं से परें जब वो
नहीं साबित कर पाती
अपने आप को, वो होकर उग्र
धारण करती हैं कालरात्रि का अवतार।
एक और वो उग्र होकर संभालती अपनी
जीवन की गाथा को, वही सुंदरता, सौंदर्य से
पारी पूर्ण होकर वो करुणा मय होकर
करती पवित्र आत्मा को
और धारण करती हैं महागौरी का अवतार।
अपनी इच्छाओं को अपने अंतर्मन में
जगा जब वो डूब जाती हैं तो
वो पाती हैं संतुष्ट जीवन अपना
और करती हैं धारण सिद्धि दात्री का अवतार।
नारी हर रूप को धारण कर
सर्वत्र पूजनीय हो जाती हैं।