मर्द
मर्द
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पैदा होने से पहले
जिम्मेदारियों से बांध दिया जाता हैं,
वो मर्द अंको से परे सीखता हैं
सैकड़ों वाली गणित
और धीरे धीरे वो बारीकियों से पहचान
लेता हैं घर की जरूरती गणित।
नए कपड़े,नए शौक उसके जीवन में
औरों के लिए बन जाते हैं
और उसके द्वारा कमाया संपूर्ण
परिश्रम, जाता हैं औरों के हिस्से।
स्वतन्त्र होकर जो जिम्मेदारियों में
कैद रहता हैं,
पुत्र, पति, पिता बन जो महज
अपना धर्म निभाता हैं
और अपना सम्पूर्ण जीवन
न्योछावर कर जो कभी
बराबरी का हक नहीं ले पाता
वो होता हैं मर्द।