नसीब
नसीब
दर दर भटकने पर
डगर डगर चलने पर
हौसलों को बुलंद कर
नसीब खुलता है।
आसानी से मिल जाए
वो मंजिल नहीं,
ऐ मंजिल के राही
मंजिल का रास्ता
मुश्किल से मिलता है।
रफ्ता रफ्ता चल रही है जिन्दगी,
तू भी चल संभल कर।
करके इबादत
निकल कर सफर।
राह आसां नहीं तो
कटने का सबर कर।
इक दिन यहीं राह होगी
नीले गगन पर।
उड़ान तेरी भी होगी
फिर देखना नजर भर।
नजर का नजरिया
पल पल में बदलता है।
रख ले खामोशी को
आज सजा कर।
कल आएगी सुबह
चंदन से नहा कर।
टकरा जा पहाडों से
तू हो के निडर।
साहस का सिपाही
समस्याओं से न डरता है।
मंजिल का रास्ता
मुश्किल से मिलता है।।
दीवार बहुत हैं
तू पंछी बन कर।
उड़ जा स्वतंत्र
इस नीले गगन पर।
वादियों का दीदार कर
आसमां में शोर कर।
महका दे तेरी खुश्बू
सारे संसार भर।
ऐसा पुष्प जीवन में
कभी कभी खिलता है।
मंजिल का रास्ता
मुश्किल से मिलता है।।
