बसंत की ऋतु
बसंत की ऋतु
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बाग में चहकी हैं चिडियां,
फूल आज खिल गये।
ऋतु बसंत की जो आई,
दिल दिलों से मिल गये।
झिलमिलाती रात आई,
तारे भी झिलमिल हुए।
चांद को देखे चकोर,
चित्त भी शीतल हुए।
क्षुदा शांत हो गई अब,
दुख भी सारे खो गए।
सपने हुए साकार सारे,
सुख भी हासिल हो गये।
सजनी सज गई प्यार में,
साजन के सपने देखती।
लाल चुनर से सजी,
साजन के घर को मैं चली।
ये बसंत की ऋतु,
भरती दिलों में प्यार है।
पीली सरसों की ये तो,
महकी हुई बहार है।
