अहं
अहं
मैंने देखा है लोगों को
अपनी चाल बदलते हुए
कभी उगते सूरज सा तेज
और डूबते सा ढ़लते हुए।
ये सूरज भी संदेश देता है
कि डूबना नियम है संसार का
लोग मगर अंधे बने रहते हैं
चश्मा पहने अहंकार का।
कुछ ज़्यादा जो आजाये हिस्से में
तो कम मिलने वाले को नकारते हैं
जिनको करते हैं पराया
मुसीबत में उन्हीं को पुकारते हैं।
पतंग भी तो बता जाता है
में उड़ रहा हूँ कटने के लिए
ऊंचाई पे घमंड मत कर
वक़्त नहीं लगता छटने के लिए।
उड़ान तो ऐसी हो के
पांव ज़मीन पर और आँखें आसमां को देखे
नीचे ही रहकर हर कदम
ऊपर उठने का सबक हर रोज़ सीखें।
अहंकार का बोझ इतना भारी है
तू पल पल ख़ुद ही मरता जाएगा
धन की उड़ान लघु है, ज्ञान का दीर्घ
धन की ये 'बौनी उड़ान' बस कुछ पल ही ठहर पायेगा।