किताब....
किताब....
बिकती हूँ बाज़ारों में
ऑफलाइन भी ऑनलाइन भी,
दिखती हूँ लाखों हज़ारों में
करती हूँ थोड़ा शाइन भी,
कोई शौक से खरीदता है
किसी की ज़रूरत होती है,
कुछ पन्नो के अल्फ़ाज़
बेहद खूबसूरत होते हैं,
कहीं आंसुओं की बाढ़ ले आऊं
कहीं दर्द की दास्तां सुनाऊं,
अनजाने मे पाठकों के दिल में मैं
कुछ अनछुए तार छेड़ जाऊं,
कभी कहानी लगूँ तो
कभी किसी शख्स की ज़ुबानी
कभी ज़िन्दगी का सबब लगूँ
कभी इश्क़ की कुर्बानी,
मैं कौन हूँ ये भूल जाता है
जो कोई मेरे पन्नो में घुल जाता है,
कुछ निगाहों का नज़रिया बदल देती हूँ
कहीं कुछ मन का मैल धुल जाता है,
मुझे पढ़ने वाला हमेशा
मेरे अंत की तलाश में होता है,
पढ़कर कर फेंक दिया किसी कोने में
तुम क्या जानो मेरा दिल कितना रोता है,
थोड़ा सम्मान भी कर लिया करो क्योंकि
मैं किसी के लिए उसका अनमोल ख़िताब हूँ,
सिर्फ कहानी नहीं , शब्दों के समूह रूप में
मैं एक जीवित किताब हूँ।