द टॉर्न पॉकेट
द टॉर्न पॉकेट
1 min
366
जितना भी मैं भरती जाऊं
ख़ाली ख़ाली सा लगता है
समेटने लग जाऊं अगर
बेहाली सा लगता है
मैंने तो सब कुछ संजोना चाहा था हमेशा
अचानक सब बिखरे से लग रहे क्यों ?
मेरी कोशिशों पे लगातार
सब सवाल रख रहे हैं क्यों ?
इक इक तिनका मैंने जोड़ा था
अपना आशियाँ बनाने को
हर चीज़ की हिफाज़त की थी
उसे खूबसूरत बनाने को
पर देखो तो...जो भी संजोया
सब कहीं खो सा गया है
खुशियों का एक सफर सुहाना
कहीं गुम हो सा गया है
ऐसा लगता है जैसे
मैं बेकार ही कोशिश करती जा रही थी
अपने हिस्से की अनमोल पूंजी को
किसी 'फटी जेब' में भरती जा रही थी।