बढ़ते कदम
बढ़ते कदम
पहाड़ भी लांघ जाते हैं
हमारे ये बढ़ते हुए कदम
हर मुश्किल हटा जाते हैं
अगर मन में पूरा हो दम।
जब शिखर को ये छूते हैं
दृढ़ता से भरे हुए हमारे मन
सभी दिशाओं से तब हाथ
समेट लेते हैं फैला हुआ धन।
समुद्र को भी लांघ जाते हैं
ये बौनी उड़ान भरते हुए भी
निरंतर बढ़ते कदमों से सरल
बन जाती हैं कठिन राहें भी।
निरंतर बढ़ते हुए कदमों से
पा सकते हैं उन ऊंचाइयों को
कभी रहती थी जो दूर हाथों से
छू सकते हैं अब ऊंचाइयों को।
