मेरी प्रकृति माँ
मेरी प्रकृति माँ
उस सुंदर सुबह के उगने की चाह में
प्रकृति माँ रोज करती यहाँ इंतजार
सदियों से बिछे हैं कांटे मेरी राह में
कब मिटेगा मुझ पर से अत्याचार
हर तरफ जंगल बिछाये कारखानों के
चारों तरफ विषैली धुआँ हवा में है छाई
जीव हुए है बेघर यहां पेड़ो के कटने से
सब मनुष्य ने संपदा की बर्बादी मचाई
सूखे की मार से सब के कंठ हुए व्याकुल
प्यासे लोगों ने खींचा गहराई का भी पानी
सूखे में नदिया नाले के रूप में बदल गई
जो बहती थी कल कल धरती पर पावनी
हरी-भरी धरा अपनी कीटनाशी से यहां
क्षमता खोकर बंजर हो रही है यहां धरती
प्लास्टिक कचरे का आकार यहां बढ़ रहा
खाकर उस कचरे को नित गायें यहां मरती
सबने उगाई है यहां पर दूषित संस्कारों से
भृष्टता फैली हर तरफ आतंक की फसलें
सब तरफ मचा है यहां पर मौत का तांडव
अब कौन करे हल यहां के ये सारे मसले ?