मेरे पिता
मेरे पिता
थमता नहीं लाड़-मनुहार का वो दौर
हमारी जरूरतें वे ही तो पूरी कर पाते हैं।
अरमानों के भरे सुंदर बक्से से अपने
खुशियां हम पर निरंतर वे ही तो लुटाते हैं।
छोटी-छोटी खुशियों की खातिर हमारे
वो फिर से कोशिशों में जुट जाते हैं।
वक्त के साथ तेज चलकर हमारे लिए
वो सुनहरा वक्त पकड़कर ले ही आते हैं।
छीन न जाये चेहरे पर मुस्कुराहट हमारे
इसके लिए वो सौ - सौ जतन कर जाते हैं।
सपनों को हमारे सदैव पूरा करने के लिए
खुद को तो वो हर पल भूल से ही जाते हैं।
स्नेह दुलार समेटकर अपनी मुट्ठियों में पिता
हम पर खुशियों की बौछार करते जाते हैं।
पिता के आशीष - दुआओं की छत्रछाया में
ही तो हम अपना सुखद भविष्य बना पाते हैं।