बचपन की बातें
बचपन की बातें
देखती चाँद, सूरज की जब रोशनी
बचपन भरी नन्ही-नन्ही हथेलियों में
सोचती इसे अपनी शरारतों में शामिल कर
चुरा लूं ये रोशनी और भर लूं अपने मन में।
नीले अंबर में जब देखे झिलमिलाते सितारे
चाहती उन्हें पकड़ लूं अपने नन्हें हाथों में
बचपन की मुस्कुराहटों में शामिल कर
समेट लूं अपने झीने-झीने आंचल में।
सागर की गोद में जब सीपियों के संग
चमकते दिखते जब श्वेत मोती लड़ियों में
जी चाहता अपने अंतर्मन में शामिल कर
मोती लड़ियों को छुपा लूं अपने हाथों में।
खुशियों में मस्त होकर जब देखा फूलों को
मन भी उनके साथ भर उठा पूरे उल्लास में
जी चाहता अपनी खुशियों में शामिल कर
गूंथ लूं उन्हें अपने हृदय हार की माला में।