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Pushpa Srivastava

Romance

3  

Pushpa Srivastava

Romance

जीवन - संध्या

जीवन - संध्या

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जीवन - संध्या में बिन तुम्हारे अकेले रहते

मन भर - भर सा जाता है।

तुम्हारी कौतुहल भरी बातें सुनने को

मन तरस - तरस जाता है।


सर्दियों की धूप में आंगन में

तुम्हारा वो धूप सेकना

आंखों को बार-बार याद आता है।


पापड़, बड़िया सुखाते हुए

तुम्हारे कंगन का मीठा स्वर

कानों में खनक - खनक जाता है।


बार-बार चाय की मांग करने पर

तुम्हारा वो झूठे ही झिड़कना

अक्सर याद आ - आ जाता है।


तुम्हारे चेहरे की वो सुंदर

मुस्कुराहट देखने को

मन तरस - तरस जाता है।


दवा न लेने पर तुम्हारा

टोकना व तुम्हारी हिदायतों का

वो शब्द - शब्द याद आता है।


मेथी के पराठे या तुम्हारे बनाये वो

जायकेदार पकवानों का

स्वाद जीभ पर लरज - लरज जाता है।


बिन बात मुझसे

तुम्हारा वो झूठे ही लड़ना

बार-बार याद आता है।


तुम्हारे तुलसी पौधे के पास

दो घड़ी आंगन में बैठकर

मन तुम्हारी यादों में

घिर-घिर जाता है।


तुम ही बताओ बिन

तुम्हारे ये जीवन

संध्या अकेले कैसे बिताऊं ?


मन तुम्हारे साथ को

तरस - तरस जाता है।

तुम्हारे सिवा इस घड़ी में

साथी नहीं कोई अपना तुम भी

साथ नहीं अब तो तुम्हारी यादों में

मन भर - भर सा जाता है।


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