रिश्ते
रिश्ते
गर मुमकिन नहीं साथ तो साथ आए क्यों ?
जो पूरे हो नहीं सकते ख़्वाब वो सजाए क्यों ?
जब दोनों ही है मजबूर रिश्ते निभाने में तो,
फिर कुसूर किसी एक का ही बताए क्यों ?
अपनी ही कोशिश में कमी रह गई कहीं तो,
नाकामी का इल्ज़ाम ज़माने पर लगाए क्यों ?
इक घुटन सी होती है जिनके क़रीब होने से,
बोझ ऐसे रिश्तों का फिर उम्र भर उठाए क्यों ?
मोहब्बत तो गुनाह नहीं ख़ुदा की भी नज़र में,
फिर चाहत अपनी ज़माने से छुपाए क्यों ?

