नारी
नारी
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कोमल नाजुक नहीं है वो नारी
करती मन से हर जिम्मेदारी पूरी
राह से दूर करती मुश्किलें सारी
करके मेहनत मशक्कत भारी।
सब तरफ मची है होड़ा - होड़ी
सब की तृष्णा की चादर है चौड़ी
उसने ही स्वार्थों की मर्यादा तोड़ी
भरी सबके बीच की खाई चौड़ी।
फैलाती कण-कण में नवजीवन
करती रसमय जग में हर एक मन
आशा के दीप से करती जग रौशन
चाहती सुख शांति फैले हर जीवन।
मानो न मानो वो है बहुत हिम्मत वाली
पोंछती सब के आंसू नहीं वो रोने वाली
है बहुत प्यार से वो साथ निभाने वाली
माँ, बहन, बीवी है वो भोली सूरत वाली।