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Pushpa Srivastava

Classics

4  

Pushpa Srivastava

Classics

सुंदर नीला आकाश

सुंदर नीला आकाश

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बहुत सुहाना दिखता है

वो प्यारा नीला आकाश

धरती पर पिता की छत्रछाया

जैसा लगता नीला आकाश।


बहुत लुभावना लगता है

बादलों का उड़ उड़ कर जाना

मस्ती में अपनी खोकर

आकाश पटल पर लहराना।


बारिश में सूर्य किरणों का

बादलों से छन छन कर आना

इंद्रधनुष बनकर अपनी

सुंदर छटा धरा पर बिखेरना।


बदलियों का कभी-कभी

काली प्रेत आकृति बन लहराना

घनघोर कर्कश निनाद कर

चमकना व लपलपाना।


काली अंधेरी रात में कभी

सबको विचलित कर डराना

या अनगिनत तारों का

आकाश नगीना बन जड़ जाना।


ऊँचाइयों पर खड़े होकर

मौन-मूक हो तुम्हारा देखना

सागर की लहरों में अंदर

तक तुम्हारा प्रतिबिम्ब दिखना।


कर देता है कभी-कभी

सबको तुम्हारा रूप चौकन्ना

हो तुम बहुत बड़े रक्षक

हर बाधा हमारी दूर कर देना।


फितरत है तुम्हारी बहुत प्यारी

मनभावन रूप अपना दिखाना

प्रेम प्राश में बांध कर सबको

अपने मोहजाल में फंसाना।


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