चाँद
चाँद
सुबह की किरण
निखर बिखर रही है,
हवा भी ठहर सिहर
राग पर अपने
थम थम कर
थिरक रही है,
थिरकती फिज़ा है,
थिरक रहा है मन
थिरकता तन,
सजन तुम तभी
मुंडेर पर नजर आए
बस भरमाए
चाँदनी चाँद की
लहर लहर लहराती
गुन गुन गुनगुनाती
लोरी गाती
फिर से सब सजाती
नजर आ रही है।।

