दीपक और तूफ़ान.....
दीपक और तूफ़ान.....
आशा का इक दीप जलाकर,
स्वपन डगर पर क़दम बढ़ाए।
स्नेह-ज्योति से दूर हुआ तम,
गीत ख़ुशी के मैंने गाए।
क्यों मुंह फेरूं कर्तव्यों से,
क्यों भूलूँ मैं ज़िम्मेदारी,
लक्ष्य मैं अपना पा ही लूँगा,
साथ कोई आए न आए।
दुख और दर्द भुलाए मैंने,
निराशाओं को पग से कुचला,
मिला कारवां ख़ुशियों का जब,
गीत मधुर प्रेम के गाए।
मैंने कभी न रुकना सीखा,
मैंने कभी न झुकना सीखा,
मेरा दीपक सक्षम इतना,
तूफ़ानों से जा टकराए।
