निबाह ख़ारों से..
निबाह ख़ारों से..
यहां आस्तीनों में सांप पलते हैं |
चलो इस बस्ती से दूर चलते हैं।
क्यूं बुरा कहते हो गिरगिट को,
लोग भी अक़्सर रंग बदलते हैं।
वक़्त से जीता ना आज तक कोई,
बादशाहों के भी आफ़ताब ढ़लते हैं।
जब भी होता है हसीं साथ तेरा,
लम्हें क्यूं हाथ से फिसलते हैं।
कौन है जो हमें खिलने से रोकेगा,
'गुलाब' सदा ख़ारों के साथ फलते हैं।
