STORYMIRROR

Gulab Jain

Abstract

3  

Gulab Jain

Abstract

स्वप्निल-सी भोर.....

स्वप्निल-सी भोर.....

1 min
245

स्वप्निल-सी भोर ने ज्यों ली अंगड़ाई |

रवि की कनक-किरणें नभ पे छितराई।


बह चली समीर मंद, फूलों की उड़ी गंध,

गुलशन में हर कली सिमटी लजाई।


कोयल की कूक से, बहार मुस्कुरा उठी,

हरियाली चहुँ ओर फैली, मुस्कुराई।


दूर कोई हिम-शिखा, किरण से नहा गई,

गगन मुस्कुरा उठा, धरती चहचहाई।


विषय का मूल्यांकन करें
लॉग इन

Similar hindi poem from Abstract