कितने मजबूर ये बाल-मजदूर...
कितने मजबूर ये बाल-मजदूर...
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मत छीनों इनसे बचपन, इनको प्यार दो।
इनको भी शान से जीने का अधिकार दो।
ये उम्र नहीं है झूठे बर्तन धोने की,
ये उम्र नहीं है ईंट और पत्थर ढ़ोने की,
ये उम्र नहीं है भूखे पेट सोने की,
दो वक़्त की रोटी पाने का अधिकार दो।
मत काटो इनके पंख इनको उड़ने दो,
इनको भी पढ़-लिख करके आगे बढ़ने दो,
मत छीनों इनकी ख़ुशियाँ इनको हंसने दो,
इनको भी खेल-खिलौनों का संसार दो।
मत छीनों इनसे बचपन, इनको प्यार दो।
