मेरी परवाज़
मेरी परवाज़
पैरों की बेड़ियाँ ख्वाबों को बांधे नहीं रे, कभी नहीं रे
मिट्टी की परतों को नन्हें से अंकुर भी चीरे, धीरे-धीरे
इरादे हरे-भरे, जिनके सीनों में घर करे
वो दिल की सुने, करे, ना डरे, ना डरे
सुबह की किरणों को रोकें, जो सलाखें है कहाँ
जो खयालों पे पहरे डाले वो आँखें है कहाँ
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़ के चूमेंगे आसमां आसमां आसमां
आज़ादियाँ, आज़ादियाॅं मांगे न कभी, मिले, मिले, मिले
आज़ादियाँ, आज़ादियाॅं जो छीने वही, जी ले, जी ले, जी ले
सुबह की किरणों...
कहानी ख़तम है
या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये
या फिर रात होने को है
आने वाला वक़्त देगा पनाहें
या फिर से मिलेंगे दो राहें
खबर क्या, क्या पताँ
इस बुलांदी पर हैं के अपनी उड़ान ना खो दें
तो आओ बचने के लिए ज़रा नीची उड़ान करले
