स्त्री
स्त्री
छोटे-छोटे कदमों से लाई जो खुशियाँ हजार हैं,
देख उसकी विदाई पर नम हुई अँखियाँ बारम्बार हैं।
देखा नहीं जिसे दुल्हन के जोड़े में कभी
देख कर हैरान हुई पूरी नस्ल हैं
जानती नहीं वो कौन, कितना उसका होगा
नए परिवेश में जाने को उत्सुक
चहकती घर की वो नाज़ुक कली हैं।
नए घर में नया सवेरा होगा उसका
रौनक से उसके आँगन महकेगा चाँद खुद आएगा उसके अँगने में
रोशनी का दीपक जलेगा उसके जीवन में।
उसकी गोद में उसका ही बचपन होगा
नन्हें कदमों में उसका पूरा संसार होगा
जिस अवस्था में आई थी वो आँगन में
उसी ऑंगन से उसी रस्म का दोहरान होगा
स्त्री का स्त्री तक का जीवन पूरे संसार के लिए
मिसाल होगा।