उड़ान
उड़ान
नन्हें नन्हें कदमों से चलकर ही तो
बड़े बड़े सफर हरदम तय होते है
चाहे मंज़िल नजर आ जाए दुर से
फिर भी चलकर ही जाना होता है
बच्चा भी शुरुआत ‘अ’ से करता है
महिनों सालों में शिक्षित हो जाता है
होले होले फुल खिलता है डाली पर
चाहे कितना जोर लगाले माली पर
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना पड़ता राही को
तभी ऊपर चढ़ पाता सुरक्षित राही वो
उड़ान भरने से पहले पंख फैलाने पड़ते
तभी पहुँच पाते ऊँचाई पर उड़ते उड़ते
जल्दी उड़ने वालों ने सदा मूँह की खाई है
हमेशा बोनी उड़ान ही मुकम्मल होती आई है