परिंदे
परिंदे
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उड़ने को तो वही बेक़रार होता है
जो पंक्षी पिंजरे में कैद होता है
नीला अंबर दिखता तो है लेकिन
अंबर पर परवाज निषेध होता है
मनचाहा मिल जाए खाने फिर भी
खुले में ना चुगने का खेद होता है
आते जाते पुचकारते दुलारते सब
तो भी पिंजरे गगन में भेद होता है
दिले अरमां रित जातें हैं तब माही के
जब भी उम्मीदों के घट में छेद होता है.