नाराजगी
नाराजगी
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कैसी कस्म कस हैं ये,
पता नही लोग हमें समझना नहीं चाहते,
या फ़िर हम लोगों को
फ़िर भी कहते हैं ख़ुद से ही,
चलो ख़ुद को और समझते हैं
गुजरते हैं रोज उसी रास्ते से,
कभी दिक्कतें थोड़ी सरफिरी होती हैं,
तो कभी हम
फ़िर भी मना लेते हैं ख़ुद को,
चलों कुछ दूर और चलते हैं
लोगों की खुशी के लिए,
लोगो में भी जीना सीख लिये
जरा सी अपनी बात रखी,
तो आवाजें आयी बदल गए तुम
फ़िर भी समझा लिया खुद को,
चलों अपनी बातें खुद से करते हैं
कैसी कसम कस।