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Antima Vind

Abstract Drama

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Antima Vind

Abstract Drama

अकेलापन

अकेलापन

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अजब सी भीड़ थीं जमाने में,

लेकिन हर कोई अन्दर से अकेला निकला

खरीददार तो बहुत थे प्यार के,

परन्तु दुकानदार ही भीखारी निकला


चमक तो बहुत थीं इन पैसे में

पर अपनापन खरीदने में ही

धुंधला निकला अजब सी

तलब तो हर किसी को थी प्यास बुझाने की,


अफसोस है घाट का धोबी ही प्यासा निकला

दुनिया को उजाला करने चला था,

पर जलते दीए के नीचे ही

अंधेरा निकला अजब सी।


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