लो सभी आ रहे हैं
लो सभी आ रहे हैं
अनायास चिंतित हैं हम
अभावों से कि
रिश्तों में अपनापन नहीं रहा
लोकतंत्र कुछ मुट्ठियों में कैद है
सभ्यता का अनादर हो रहा है
पाखंड बहुत शक्तिशाली हो चला है
तर्को का सम्मोहन सत्य का गला घोंट रहा है
जीवन देने वाले के नाम पर
जीवन लिया जा रहा है
अब ठीक से महसूस करें
अपने परिवेश को तो
सूरज आ रहा है हमारे पास
हवा बेचैन है हमारी सोहबत के लिये
दिलों में घर बना लिया है हमने
चाँद आंखमिचौली खेल रहा है हमारे साथ
और हमारी अंगुलियां है माँ के हाथ में
सिर पर आकाश का साया है
धूप निकलती है तो बादल चले आते हैं आकाश में
और सबसे अच्छी बात तो ये है
जिसकी कल्पना में खोया हुआ है
हमारे धर्म का रहनुमा
वो हमारे साथ साथ चल रहा है
अपने वायदे निभा रहा है।
अभाव का भी अपना भाव है
और इस भाव मे भी जीने के
सारे सामान हमारे आस पास
बिखरे ही सही,हैं प्रचुर मात्रा में।