STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

लो सभी आ रहे हैं

लो सभी आ रहे हैं

1 min
214


अनायास चिंतित हैं हम

अभावों से कि

रिश्तों में अपनापन नहीं रहा

लोकतंत्र कुछ मुट्ठियों में कैद है

सभ्यता का अनादर हो रहा है

पाखंड बहुत शक्तिशाली हो चला है

तर्को का सम्मोहन सत्य का गला घोंट रहा है

जीवन देने वाले के नाम पर

जीवन लिया जा रहा है

अब ठीक से महसूस करें

अपने परिवेश को तो

सूरज आ रहा है हमारे पास

हवा बेचैन है हमारी सोहबत के लिये

दिलों में घर बना लिया है हमने

चाँद आंखमिचौली खेल रहा है हमारे साथ

और हमारी अंगुलियां है माँ के हाथ में

सिर पर आकाश का साया है

धूप निकलती है तो बादल चले आते हैं आकाश में

और सबसे अच्छी बात तो ये है

जिसकी कल्पना में खोया हुआ है

हमारे धर्म का रहनुमा

वो हमारे साथ साथ चल रहा है

अपने वायदे निभा रहा है।

अभाव का भी अपना भाव है

और इस भाव मे भी जीने के

सारे सामान हमारे आस पास

बिखरे ही सही,हैं प्रचुर मात्रा में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract