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Vijay Kumar

Tragedy

4.5  

Vijay Kumar

Tragedy

कैसा लगता है

कैसा लगता है

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जब कोई सो नहीं पाता है

कई दिन और रात

तो सोचो कैसा लगता है,


जिंदगी की भागदौड़ में

रोटी के गठजोड़ में

अपनों की याद में

जब कोई सिसकता है

तो सोचो कैसा लगता है,


युवा पढ़ता है नौकरी की आस में

भटकता है रोजगार की तलाश में

जब भ्रष्टाचार के खेल में पिछड़ता है

तो सोचो कैसा लगता है,


भूख से बिलखते हुए जब कोई मरता है

अपने जीवन की हर लड़ाई हारकर

जब कोई खुद को समाप्त करता है

तो सोचो कैसा लगता है,


आँखों में हो जब अनगिनत सपने

एक - एक करके जब टूटने लगते हैं

उसके गर्त में जब कोई डूबता है

तो सोचो कैसा लगता है,


जात - पात के नाम पर

बढ़ते दहेज के लोभ में

जब कोई पिस जाता है

तो सोचो कैसा लगता है,


जब सिर से बड़ो का साया उठ जाता है

अपने लोगों द्वारा ही दुत्कारा जाता है

विश्वास के नाम पर हर पल धोखा खाता है

तो सोचो कैसा लगता है।


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