हक की लड़ाई के दौरान
हक की लड़ाई के दौरान
अवसरवादियों और टुक्कड़खोर
लोगों की जमात
एकदम उभरकर
अफवाहें गर्म करती हैं
एक निराशा का घना बादल
लोगों को घुटने टेकने के लिए
प्रोत्साहित करता है
ऐसे में छांटकर उन्हें
मजदूरों के आमने-सामने कर
पूंजीपतियों/ उनके दलाल मैनेजमेंट
और पिछलग्गुओं को
मजदूर के हक की लड़ाई के खिलाफ
की गई साजिश को
बेरहमी से, बिना हील-हुचक
भांडा फोडकर, वही सलूक किया जाना चाहिए
जो अपने वर्ग शत्रु के खिलाफ
किया जाता है
बेशर्म लालची लौंडे, लार टपकाते
अपना काम बखूबी
कोने में खुसर-पुसर कर
संघर्ष को, नेतागिरी ज़माने की दुकान बता
मजदूर को / ‘कोई किसी का नहीं है’
का फलसफा पढ़ाता है
और फिर कटोरा हाथ में लेकर
दयनीयता चेहरे पर उतारता है
तिरस्कार एवं अपमान के बावजूद
प्रशस्तियां गाता है
सेक्स और पैसे की सौदेबाजी से
अपनी कुर्सियां नियत कर
नैतिकता और देश की दुहाई देता
अपना काला मुँह प्रदर्शित करता है
इनके साथ कोई रियायत
हमारे संघर्ष को ढीला कर सकती है
बढ़ते हुए प्रगति मार्च को
पीछे धकेल सकती है
इन शक्तियों को नेस्तनाबूद करना
डेमोरिलाईज करना
और तमाम हथकण्डे
जिनसे इनकी खुजली का इलाज होता है
इस्तेमाल में लाना
हमारे संघर्ष को आगे बढ़ा
पहुंचाता है
सफलता की मंजिल तक.
