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Arun Kumar Prasad

Tragedy

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Arun Kumar Prasad

Tragedy

आज मैं गाँव से लौटा हूँ

आज मैं गाँव से लौटा हूँ

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आज मैं गाँव से लौटा हूँ।

मन में गहन पीड़ा लिए बैठा हूँ।

सारे रिश्ते सम्बोधन तक हो गए हैं सीमित।

नाते भी मिले अत्यंत क्षोभित व दु:खित।

‘सब जोगिया मर जाय, हमर पतरिया भर जाय’।

इस सोच से सबका मन भरा है,क्या कहा जाय!

आज मैं गाँव से लौटा हूँ।

क्या कहूँ? कितना उदास बैठा हूँ?


सत्ता-संघर्ष राजधानियों से उतर आ गया है गाँव में।

भाईचारा छोड़िए, नैतिकता तक लग गया है दांव में।

सारी आवश्यकताएँ परिवर्तित होकर हो गयी हैं भौतिक। 

और आध्यात्मिकाएँ रह गयी हैं मात्र मौखिक।

अध्यात्म,ईश्वर में आस्था या विश्वास नहीं है।

यह तो मानवीय मूल्यों में आस्था और विश्वास ही है।

आज मैं गाँव से लौटा हूँ।

अतीत के उलझे पन्नों में पैठा हूँ।


गायब है गाँव से कोमल भावनाएँ।

बढ़ रही है नित लोगों में विभिन्न कठोरताएँ।

धोखा देना ‘फैशन’ नहीं विशेषता चारित्रिक है अब।

हड़प ले सकना किसी का कुछ प्रतिभा है अब।

झूठ को सत्य की तरह परोसना परोपकार बांटना जैसे।

गाँव के सोच का व्यभिचार,भूलूँ तो भूलूँ कैसे ?

आज मैं गाँव से लौटा हूँ।

गाँव में आदमी के शहरीकरण को सोचता बैठा हूँ।


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