“ शिकवा और शिकायत ”
“ शिकवा और शिकायत ”
पढ़ो या ना पढ़ो तुम तो
सदा मैं लिखता जाऊँगा
नहीं है कोई भी शिकवा
शिकायत क्यूँ बताऊँगा
लिखूँगा अपनी बातों को
जहाँ लिखना मुझे होगा
समझना आप यदि चाहें
उसे फिर देखना होगा
बहुत कम लोग हैं जग में
किसी के साथ चलते हैं
सभी की अपनी दुनिया है
कभी नहीं संग देते हैं
नसीहत किसको हम देंगे
सभी की चाल अपनी ह
ै
करें मनमानी नेता गण
कहे सरकार सबकी है
अकेला चल पड़ा हूँ मैं
कोई नहीं साथ है मेरा
मुझे भय है नहीं कोई
कोई भी संग है मेरा
रहूँ या ना रहूँ कल को
रहेगी लेखनी जग में
तभी मैं याद आऊँगा
रहूँगा सब के नयनों में
पढ़ो या ना पढ़ो तुम तो
सदा मैं लिखता जाऊँगा
नहीं है कोई भी शिकवा
शिकायत क्यूँ बताऊँगा !!