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V. Aaradhyaa

Tragedy

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V. Aaradhyaa

Tragedy

अपनी मुट्ठी को कसा हुआ है

अपनी मुट्ठी को कसा हुआ है

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खुद के लिए जीने का एक ख्वाब ...

मेरी सपनीली आँखों में भी बसा हुआ है ;

पर आमदनी और खर्चे के हिसाब की ,

वजह से मैंने अपनी मुट्ठी को कसा हुआ है !


कई ख्वाब आँखों में पलते ज़रूर हैं...

पर उन्हें पूरा करने के लिए मशक्क्त करनी पड़ती है ;

इधर ये ज़िन्दगी भी ना सौदेबाज़ी में बड़ी पक्की है ,

यहां हर ख़ुशी की क़ीमत प्रीपेड चुकानी पड़ती है !


कुछ ख्वाब तो पुरे होते होते रह जाते हैं...

और हम बारहा खुद को आजमाते चले जाते हैं ;

कभी ज़िन्दगी को चलाने में वक़्त कम पड़ जाता है ,

तो कभी फुरसत मिले तो सांसे ही खत्म हो जाती है !



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