अपनी मुट्ठी को कसा हुआ है
अपनी मुट्ठी को कसा हुआ है
खुद के लिए जीने का एक ख्वाब ...
मेरी सपनीली आँखों में भी बसा हुआ है ;
पर आमदनी और खर्चे के हिसाब की ,
वजह से मैंने अपनी मुट्ठी को कसा हुआ है !
कई ख्वाब आँखों में पलते ज़रूर हैं...
पर उन्हें पूरा करने के लिए मशक्क्त करनी पड़ती है ;
इधर ये ज़िन्दगी भी ना सौदेबाज़ी में बड़ी पक्की है ,
यहां हर ख़ुशी की क़ीमत प्रीपेड चुकानी पड़ती है !
कुछ ख्वाब तो पुरे होते होते रह जाते हैं...
और हम बारहा खुद को आजमाते चले जाते हैं ;
कभी ज़िन्दगी को चलाने में वक़्त कम पड़ जाता है ,
तो कभी फुरसत मिले तो सांसे ही खत्म हो जाती है !
