मां मुझे घर नहीं जाना....
मां मुझे घर नहीं जाना....
वो जो मेरी यादों से जुड़ा हाय
वो जो मेरे बचपन में घुला है
मेरा पता, जिससे कोई न था अनजाना
उस घर में मां....मुझे नही जाना
गूंजी थी जहां मेरी किलकारियां
उंगली पकड़ कर सीखा था चलना जहां
उन यादों से मेरा दिल नहीं है बेगाना
पर उस घर में मां...मुझे नहीं जाना
हँसती थी मुझे देख कर जिनकी आँखें
गोद में बिठा कर सुना करते थे मेरी बातें
ऐसा अरमान जो रह गया अनसुना
अब उस घर में मां....मुझे नहीं जाना
बिखरी पड़ी थी थी जहां जिंदगी तेरी मेरी
समेटने को कोई अपना ना था वहां
जिन्हें इंतज़ार नहीं था अब हमारा और ना है अब हमें लौटना
इसलिए अब उस घर में मां....मुझे नहीं जाना।
