कुछ भूला नहीं मैं
कुछ भूला नहीं मैं
वो जाड़े का मौसम वो हाथों की नर्मी
वो चाय का प्याला वो आग की गर्मी
वो यादों का पिटारा वो बातों में शर्मी
कुछ भूला नहीं मैं तेरे एहसास आज भी मेरे दिल में है जमी
कभी तेरा रूठना कभी मान जाना
कभी मूंह फेरना कभी नज़र मिलना
तेरी शिकायतों पे तूझ पर प्यार बरसाना
कुछ भूला नहीं मैं तुझे पाने के लिऐ मेरा खुद को हार जाना
तेरे वादों पे मेरा ऐतबार करना
तेरे बाद भी मेरा सिर्फ़ तुझी से ही प्यार करना
आदत पे मेरी तेरा अब गौर ना करना
कुछ भूला नहीं मैं तेरा मुझसे खुद को दूर करना
अब तेरी याद में सिर्फ जी रहा हूं मैं
तेरे बाद अब तन्हा रह गया हूं मैं
मेरा हाल पूछना तो अब हवाओं ने भी छोर दिया है
जबसे तेरे इश्क में फना हो गया हूं मैं

