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अमित प्रेमशंकर

Tragedy Inspirational Others

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अमित प्रेमशंकर

Tragedy Inspirational Others

मजदूर

मजदूर

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पेट के खातिर घर के खातिर

गाली बोली सह गए हम

कभी गोह में फंसे महीनों

कभी धार में बह गए हम।।


सोचा था बच्चों के खातिर

अन्न का दाना लाएंगे

साथ ख़ुशी से बैठ निवाला

मिलकर दो दो खाएंगे

मेहनतकश मजदूरी वाले

भूखे प्यासे रह गए हम

कभी गोह में फंसे महीनों

कभी धार में बह गए हम।।


दो वक्त की रोटी को 

पर्वत पे भी चढ़ाई की

गरज थी मेरी ऐसी कि

सागर से भी लड़ाई की

हाड़ से अपने पत्थर कूटते

खून बहाते रह गए हम

कभी गोह में फंसे महीनों

कभी धार में बह गए हम।।


ब्याह बहन का बाकी है

बाबूजी बूढ़े हो चले 

गांव में लाखों कर्जे हैं

हफ्तों से चूल्हे नहीं जले

मां दवा बिन तड़प रही 

और तड़प-तड़प कर मर गए हम

कभी गोह में फंसे महीनों

कभी धार में बह गए हम।।



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