प्रेम, ग्रंथ है।
प्रेम, ग्रंथ है।
प्रेम, ग्रंथ है
हो जाता जब प्रेम तो फिर
रह जाता है कोई भेद नहीं।
प्रेम, ग्रंथ बन जाता है
ऐसा फिर कोई वेद नहीं।
ना जात पात ना ऊंँच नीच
कर्मों का कोई खेद नहीं
एक दूजे में रम जाते हैं
दिल में कोई संदेह नहीं।
दिल पर सहस्त्रों शस्त्र चले
यह होता है विभेद नहीं
तरकस का ऐसा तीर कोई
कर सकता है विच्छेद नहीं।
यह प्रेम अमर है प्रेम अटल है
प्रेम बिना नावेद नहीं
हो जाता जब प्रेम तो फिर
रह जाता है कोई भेद नहीं।
अमित प्रेमशंकर ✍️
